Chhath Puja 2024: भगवान सूर्य और छठी मैया को समर्पित छठ के पर्व का चौथा और आखिरी दिन ऊषा अर्घ्य के रूप में मनाया जाता है. छठ पूजा के चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. छठ की शुरुआत नहाय-खाय से होती है. इसके बाद दूसरे दिन खरना होता है. तीसरा दिन संध्या अर्घ्य होता है और चौथे दिन को ऊषा अर्घ्य के नाम से जाना जाता है. कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन छठ पूजा की जाती है. यह पूजा भगवान सूर्य और उनकी पत्नी ऊषा को समर्पित होती है.
ऊषा अर्घ्य का महत्व (Usha Arhgya importance)
छठ पूजा का अंतिम और आखिरी दिन ऊषा अर्घ्य होता है. इस दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद छठ के व्रत का पारण किया जाता है. इस दिन व्रती महिलाएं सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर उदित होते सूर्य को अर्घ्य देती हैं. इसके बाद सूर्य भगवान और छठ मैया से संतान की रक्षा और परिवार की सुख-शांति की कामना करती हैं. इस पूजा के बाद व्रती कच्चे दूध, जल और प्रसाद से व्रत का पारण करती हैं.
ऊषा अर्घ्य का मुहूर्त (Usha Arhgya 2024 Muhurat)
ऊषा अर्घ्य आज दिया जा रहा है. ऊषा अर्घ्य का मुहूर्त आज सुबह 6 बजकर 38 मिनट पर रहेगा.
ऊषा अर्घ्य के दिन इन बातों का रखें ध्यान
1. सूर्य देव को अर्घ्य देते समय अपना चेहरा हमेशा पूर्व दिशा की ओर ही रखें.
2. सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए हमेशा तांबे के पात्र का ही प्रयोग करें.
3. सूर्य देव को अर्घ्य देते समय जल के पात्र को हमेशा दोनों हाथों से पकड़े.
4. सूर्य को अर्घ्य देते समय पानी की धार पर पड़ रही किरणों को देखना बहुत ही शुभ माना जाता है.
5. अर्घ्य देते समय पात्र में अक्षत और लाल रंग का फूल डालना न भूलें.
छठ पूजा की कथा
छठ पर्व से जुड़ी कथा के अनुसार बताया जाता है कि, राजा प्रियव्रत की कोई संतान नहीं थी जिसके चलते वह बेहद ही परेशान और दुखी रहा करते थे. एक बार महर्षि कश्यप ने राजा से संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा. महाराज जी की आज्ञा मानकर राजा ने यज्ञ कराया जिसके बाद राजा को एक पुत्र हुआ भी लेकिन दुर्भाग्य से वो बच्चा मृत पैदा हुआ. इस बात को लेकर राजा और रानी और उनके और परिजन और भी ज्यादा दुखी हो गए. तभी आकाश से माता षष्ठी आई.
राजा ने उनसे प्रार्थना की और तब देवी षष्ठी ने उनसे अपना परिचय देते हुए कहा कि, 'मैं ब्रह्मा के मानस पुत्री षष्ठी देवी हूं. मैं इस विश्व के सभी बालकों की रक्षा करती हूं और जो लोग निसंतान हैं उन्हें संतान सुख प्रदान करती हूं.' इसके बाद देवी ने राजा के मृत शिशु को आशीष देते हुए उस पर अपना हाथ फेरा जिससे वह तुरंत ही जीवित हो गया. यह देखकर राजा बेहद ही प्रसन्न हुए और उन्होंने देवी षष्ठी की आराधना प्रारंभ कर दी. कहा जाता है कि इसके बाद ही छठी माता की पूजा का विधान शुरू हुआ.
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